गुरुवार, 8 नवंबर 2012

Chup Mat Ho Gargi... Ab Tumhara Sir, Koi Dhad Se Alag Nahi Kar Sakta - 2

चुप मत हो गार्गी... अब तुम्हारा सिर, कोई धड़ से अलग नहीं कर सकता - 2



हे धरा !

मैं तुम्हारे अंदर

पल रही बीज की

वह जड़ हूँ

जो सृष्टि को सृष्टि

और सृजन को सृजनयोग्य

बनाती है


मैं तुम्हारी अंश हूँ

तुम्हारी ही वंश

मत उखाड़ फेको मुझे

यदि मैं नहीं, तो

न उगेंगे पौधे

न लगेंगे फल

न होगी बगिया

और न चहकेंगी चिड़िया

न होगी सृष्टि

न होगा सृजन

और न ही होगा कोई सृजनहार…


बोलो धरा

क्या तुम्हें मंजूर है

प्रलय का ताण्डव-नर्तन…

लोगों का क्या

लोग तो तुम्हें

सहनशील धैर्यशील

मानते हैं

पर क्या वे जानते हैं

सहनशीलता की सीमा ?

क्या उन्हीं के कहने पर

मिटाने जा रही हो

अपना ही अस्तित्व ?


कहने को तो

लोग कहते हैं

स्त्री-पुरूष में अंतर नहीं होता

अंतर तो कर्म से बनता है

लेकिन हे धरा

अभी तो मैंने इस

दुनियाँ में कदम भी नहीं रखा

फिर

अभी से कर्म कैसा

और अंतर क्यों

बताओ न...


लोग कहते है

वैदिक काल में

स्त्री-पुरूष में समानता थी

स्वतंत्र थी स्त्रियाँ !!!

फिर क्यों जबरदस्ती

उठाया गया श्वेतकेतु की

माँ को

क्यों सहमति देनी पड़ी

विवाह को

क्यों अहिल्या बनी पत्थर

क्यों परशुराम ने काटी

माँ की जिह्वा

क्यों मिली धमकी

गार्गी को

क्यों गाय के बदले अनेक

हाथों सौंपा गया माधवी को

क्यों खिलौना बना पृथ्वी पर

भेजता रहा इन्द्र

विवश अप्सराओं को

क्यों ऋचाएँ लिखकर भी

नहीं बन सकीं वे विदुषी

क्यों पति के रहते हुए भी

बार-बार जन्मी सति

जन कल्याण हेतु क्यों

हो गई रति विधवा

क्यों दर-दर की ठोकरें

खाती रही शकुन्तला


हे धरा !

क्यों चुना सीता ने

फिर से तेरा ही गर्भ

क्यों नहीं जा सकी

उर्मिला पति संग

क्यों कट गई नाक

सुपर्णखा की

नियोग प्रथा होते हुए भी

क्यों नहीं अपना सकी

कर्ण को कुन्ती

क्यों अम्बा अम्बालिका को

बदलना पड़ा रूप

क्यों खोल न सकी

गांधारी आँखों से पट्टी

क्यों अर्जून की होकर भी

भाईयों में बट गई द्रोपदी

चीर हरण के समय कहाँ

थी पतियों की शक्ति

क्यों विवश थी पति से दूर

रहने हेतु रोहिणी

क्यों भाई की चहेती होकर

भी बंदी बनी देवकी

क्यों उठाया वासुदेव ने

मरने हेतु पुत्र के बदले

यशोदा की पुत्री

क्यों यशोदा पुत्र पालकर

भी रह गई पुत्र-प्रेम से वंचित

क्यों वियोगिनी हुईं गोपियाँ

क्यों राधा हुई आँसूओं से संचित

क्यों मीरा को करना पड़ा

विषपान

कहो धर्म में कितना है

प्राप्त नारी को सम्मान ?


क्यों आश्रमों में बनी

भिक्षुणियाँ भोग-विलास

क्यों जन्मीं कुप्रथा

बाल-विवाह

पर्दा-प्रथा, सति-प्रथा

क्यों प्रेम करने पर बेटियाँ हुईं

ऑनर कीलिंग की शिकार

क्यों मना करने पर फेंका

गया तेजाब

क्यों संविधान में होकर भी

नहीं हुई अधिकार की

भागीदार


हे धरा !

देखो इतिहास के पन्नों

को पलटकर

पन्नों में रह गई

हैं नारियाँ सिमटकर

पवित्रता नैतिकता

मर्यादा के बीच

कितना है उनका जीवट ?


हे धरा !

तुम्हारे विनाश में

स्कैनिंग मशीन

की गलती है

या हमारी सोच की ?

सोचो धरा सोचो

गर्भ में अभिमण्यु

चक्रव्यूह का सातवां द्वार

तोड़ना क्यों नहीं

सीख पाया ?

उस वक्त तुम सो गई थी

पर इस वक्त मत सोना

तुम्हारे ही जागने से

जागेगा संसार

तुम्हारे ही सोने होगा

संसार विरान


हे धरा !

अब तुझे धरा नहीं

बनना होगा गार्गी

जिसने डटकर सामना

किया था याज्ञवल्क्य का

तुम्हें भी सामना करना होगा

रूढ़िवादी समाज का

कह दो इस समाज से

न होगी अब अहिल्या

न मेनका

न माधवी

न ही शकुन्तला

न सीता न उर्मिला

न राधा न गोपियाँ

न कुन्ती न द्रोपदी

अब होगा जन्म सिर्फ

एक मानव का

और दुंगी जन्म

मानवता को…


हे गार्गी !

यदि तू चाहती है

कि मैं इस दुनियाँ

में आऊँ, तो

पूछो हर

याज्ञवल्क्य से

फल से बीज बनता कैसे है

बीज रोपा कहाँ जाता है

नफरत का उल्टा क्या है

ममता का आश्रय कहाँ है

पृथ्वी से सहनशील कौन है

आसमान से ऊँचे ख्वाब किसके हैं

पितृसत्ता और मातृसत्ता का उल्टा क्या है

स्वतंत्रता का मतलब क्या है

समानता होती क्या है

प्रेम बसता कहाँ है

प्रेम निभाता कौन है

प्रेम का परिणाम क्या है

सृजन होता कैसे है

संहार शुरू कहाँ से होता है ???


हे गार्गी !

डर मत

तुम्हारे लिए कदम

तुम्हें ही उठाना होगा

यदि तेरा एक सिर कटेगा

तो लहरायेंगे हजारों हाथ

और तेरा सिर बचा

तो जन्मेंगे हजारों सिर

आज की चुप्पी

प्रश्न-चिन्ह है

तुम्हारे जडों पर

वंश पर, अंश पर

समूल पर, अस्तित्व पर

इसलिए

चुप मत हो गार्गी...

अब तुम्हारा सिर,

कोई धड़ से अलग नहीं कर सकता…

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