चुप मत हो गार्गी… अब तुम्हारा सिर, कोई धड़ से अलग नहीं कर सकता - 1
धरती, आकाश, सागर किसने बनाया
मैं नहीं जानती
मैं बस इतना जानती हूँ कि
स्त्री को स्त्री तुमने बनाया
वरना मैं तो तुम्हारी तरह ही निश्छल जन्मी थी
प्यार करती रही माँ-बाप को
पर माँ माँ न थी, एक औरत थी
और पिता पिता न थे, एक पुरूष थे
यह जाना मैंने जनानांगों के उभरने के बाद
क्यों रोकती थी माँ ब्वायज़ स्कूल में पढ़ने से और
क्यों रोकता था भाई गाँव में घूमने से
यह जाना मैंने प्रेम में धोखा खाने के बाद
क्यों माँ छुपाती थी सात पर्दों में और
क्यों पापा जड़ते थे तमाचा लड़कों के साथ खेलने पर
यह जाना मैंने शादी के बाद
क्यों पति ने हमेंशा रखा चहारदीवारी में और
क्यों पुत्र ने रखा सदैव चौखट पर
यह जाना मैंने जवानी बीत जाने के बाद।
क्यों हर तरफ छायी है उदासी
क्यों हर जगह तुम ही तुम हो
कहीं भी मैं नहीं ...
यह समझा मैंने उम्र कट जाने के बाद
क्या बचा है बचाने को
चुप मत हो गार्गी...
अब तुम्हारा सिर, कोई धड़ से अलग नहीं कर सकता...
धरती, आकाश, सागर किसने बनाया
मैं नहीं जानती
मैं बस इतना जानती हूँ कि
स्त्री को स्त्री तुमने बनाया
वरना मैं तो तुम्हारी तरह ही निश्छल जन्मी थी
प्यार करती रही माँ-बाप को
पर माँ माँ न थी, एक औरत थी
और पिता पिता न थे, एक पुरूष थे
यह जाना मैंने जनानांगों के उभरने के बाद
क्यों रोकती थी माँ ब्वायज़ स्कूल में पढ़ने से और
क्यों रोकता था भाई गाँव में घूमने से
यह जाना मैंने प्रेम में धोखा खाने के बाद
क्यों माँ छुपाती थी सात पर्दों में और
क्यों पापा जड़ते थे तमाचा लड़कों के साथ खेलने पर
यह जाना मैंने शादी के बाद
क्यों पति ने हमेंशा रखा चहारदीवारी में और
क्यों पुत्र ने रखा सदैव चौखट पर
यह जाना मैंने जवानी बीत जाने के बाद।
क्यों हर तरफ छायी है उदासी
क्यों हर जगह तुम ही तुम हो
कहीं भी मैं नहीं ...
यह समझा मैंने उम्र कट जाने के बाद
क्या बचा है बचाने को
चुप मत हो गार्गी...
अब तुम्हारा सिर, कोई धड़ से अलग नहीं कर सकता...
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