मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

Gulaab


गुलाब

गुलाब...
एक रोज दिए थे तुमने
इज़हार-ए-दोस्ती की खातीर
वो आज किसी फेकीं हुई
रद्दी की किताबों में मिली
जिसकी खुशबू आज भी बरकरार है
और तुम्हारा चेहरा धूँधला
हो चुका है...

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

काव्य-संग्रह - मैं मुक्त हूँ