मंगलवार, 22 जून 2010

Main Mukta Hoon

           मैं मुक्त हूँ

मैं अब खुली किताब नहीं
        एक बंद निधि हूँ.
जिसे न तुम पढ़ सकते हो, और
        न ही खर्च कर सकते हो,
जिसे न तुम सहेज सकते हो
        और न ही फेंक सकते हो.

वो वक्त बीत चुका,
        जब तुम
मुझे पढने के बाद
        रद्दी की टोकरी में फेंक देते थे;
अब तुम पढ़ ही नहीं सकते 
        तो फेंकोगे कहाँ से?

में एक अर्थवान कलमा हूँ
       जो अर्थ से परे
छंदबद्धता, अलंकारों से मुक्त
       इतिहास के पन्नों पर
स्वर्ण अक्षरों से लिखी
       अर्थामृत हूँ.