रविवार, 25 जुलाई 2010

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                सीते !

सीते, तू क्यों हार गई ?
तू देवी है, तू  माता है
तू आराध्य, जगमाता है.
तू समस्त नारियों की अभिमान 
तेरे पगचिन्हों पर चले जहान,
तू आदर्श पुत्री, तू पत्नी है
तू आदर्श बहू औ' रानी है
दुनियाँ की ये इच्छा है
तुझ जैसी सबको सती मिले.
फिर ऐ पतिव्रता,
तू क्यों हुई लहुलुहान
अंततः दे दी क्यों जाँ गवां
तू सतियों में सती नारी है.
हर समाज  में प्यारी है.

ऐ सुकुमारी, क्या तुझे पता ?
जब चली तू पति-प्रेम हेतु वनवास
उर पति भी तेरे संग चला
उर नहीं जा सकी पिय के संग
वो खड़ी रही एक पग, दीप जला
उस मर्म को तुने कितना समझा ?
वो शिखा संग जलती रही
पिया की राह तकती रही,
तू पिया संग निश्चिन्त रही
लक्ष्मण रक्षा हेतु जगे बन प्रहरी
उर आंसू पीकर मौन रही
विरह-अग्नि में तपती रही,
जब लगा लक्ष्मण को नागपाश
मुर्छित भ्रात्रु का तुझे नहीं आभास
उर समझ गई वह प्रचंड काल
वह साधना में तल्लीन  हुई
लक्ष्मण को मिला जीवनदान
प्रिय-प्रेम में वह विजयी हुई.

ऐ पतिव्रता, क्या तुझे पता ?
तेरी बहन मांडवी की वेदना,
भरत भ्रात्रु-प्रेम में बन गए सन्यासी
वो प्यारी खजाने में भी खाली
दूर पति हो तो सह ले जुदाई
गर पास हो तो कैसे सहे
उसका हिय कैसे बना कठोर
क्या उसके दर्द का है कोई ओर-छोर ?

ऐ महारानी, राम की रानी !
क्या तुझे पता, श्रुतिकेतु की महानता ?
जब सबने ले लिया अवकाश
तब श्रुति ने ही सम्भाला पिय संग राज्य
वह डटी रही पर हटी नहीं
वह जगी रही पर सोई नहीं
पिय संग हो या दूर हो
वह रोई सही पर घबराई नहीं.

ऐ जानकी ! तेरी बहनें थीं
धैर्यवान, बलवान और महान
वे खामोश सही पर डरी नहीं
वे तन्हाँ सही पर अडिग रहीं
वे हारकर मरी नहीं.

ऐ सीते, क्या तुझे पता है
आत्महत्या कौन करता है ?
...................................
........ तू डरती रही
पति,समाज और दुनियाँ से
माना की पति का दिया साथ
वन में चल दी ले हांथों में हाथ
कष्ट सहती रही दिन औ' रात,

सूना है, तुझमें थी बड़ी शक्ति
सृष्टि पर है तेरी हस्ती
फिर भी
'किडनैप' हो गई रावण के हाथ.

सूना है, यदि रावण तुझे छू देता, तो
वह जलकर भष्म हो जाता
फिर क्यों नहीं जलाकर भाग आई
तू अपने राम के पास !!
क्यों होने दिया नरसंहार
क्या नहीं समझ पाई थी
कुटुम्बी जनों का प्यार,
क्या सुनाई नहीं देता था
अशोक-वाटिका में
माताओं, विधवाओं का चीत्कार,
क्यों नहीं तोड़ा तुने कारागार
क्यों करती रही अबला की भांति
अपने राम का इंतज़ार.
उस राम का, जिसने
वापस आते ही ली अग्नि-परीक्षा
क्या तुझपर न था तनिक भी विश्वास
पर इतना बता जानकी-
'विश्वास बिना प्रेम संभव कैसे ?
विश्वास तो प्रेम का बीजारोपण है'!

सूना है, ये सब खेल था
राम ने तुझे पहले ही
अग्नि को सौप दिया था
क्योकि उन्हें पता था
रावण तुझे ले जाएगा
ब्रम्हा जो थे !!!
अपहृत सीता तो तेरी छाया थी
उन्होंने मात्र अग्नी से तुम्हे वापस लिया था .

क्या करूँ सीते, मेरा मन नहीं मानता
     क्योकि औरत के साथ हुए
      प्रत्येक जुर्म को 
खेल ही समझा जाता है.
पुरुष खेलता है,
क्योंकि औरत खिलौना जो है !!
मैंने तो यहाँ तक सूना है की
नेपथ्य में रावण तुझे
माता कहकर पूजता था,
क्या ये  सत्य है सीते !
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष का चलचित्र
एक ओर माता और
दूसरी ओर हवस की  इच्छा,
फिर इतना बता दो जनकदुलारी !
'किस समाज की ओर
     संकेत करता है ये छद्म' ?

वापसी का भी क्या फ़ायदा सीते
     एक धोबी के व्यंग से
कर दिया गया तेरा परित्याग
राम जिसे पहचानते तक न थे
उसके व्यंग को पहचान गए
तू सहचरी बन प्रतिपल रही साथ
पर तेरी पहचान से वे रहे अनजान
अपमान की आशंका से
छोड़ दिया तेरा हाथ
वह भी उस समय
जब थी गर्भवती तू, और
    उन्हें रहना था तेरे पास !
कहाँ गया था उस समय 
लक्ष्मण का मात्रु-प्रेम
क्या जंगल में था
     मात्र भ्रात्रु-प्रेम !
क्या नहीं था खानदान
     में कोई शेष
जो कुचल  सके ऐसे राज्य का
     छद्मी वेश !

क्या सोचा था कभी, तुने बाद में
     क्यों तेरी बहनों ने
चुप्पी साध ली थी ?
जबकि जनकपुरी की सभी लड़कियां
एक साथ अयोध्या में ब्याही गई थीं !
तुम उनकी मार्गदर्शिका होकर भी
     झेलती रही अत्याचार
क्या नहीं हो सकता था लंका के बाद
     कोई और व्याभिचार
होती रही तेरे सतीत्व की परीक्षा
राजा राम बने रहें सदाचार !

सुना है, राम-राज्य में
    ये राम की विवशता थी,
जिसका सपना
    प्रत्येक भारतीय देखता है.
वो राज्य,जहाँ पत्नी को
बेसहारा जंगल में छोड़ दिया जाता है
कसूर मात्र शक और व्यंग्य !!

ऐ सीते, क्यों नहीं लड़ी तू हक़ के लिए
आत्महत्या कर ली कर मात्र शक के लिए,
     क्या कुछ भी नहीं सीखा
          अपनी बहनों से
जो हिम्मत के साथ
          घर में अटल रहीं,
तू रानी बनकर भी
          विकल रही .

सुना है, राम तुझे बचाने के लिए दौड़े थे
पर तबतक तू धरती में समा चुकी थी ,
     और ये भी सुना है राम भगवान थे, औ'
    तुझे प्यार भी बहुत करते थे,
जब तू जंगलों में बेसहारा भटक रही थी
तब तेरी प्रतिमा से पूजा सम्पन्न हुई थी,
    वे बहुत शक्तिशाली भी थे
    लंका नगरी से बचाकर तुझे लाये थे
    अपने सामने तिल-तिलकर मरने के लिए.
सुना है, उनके लिए कुछ भी असंभव न था
परन्तु तुम्हे बचाना उनके लिए संभव न हो सका
    तू काल के गर्त में समाती गई
    और वे तेरे बाल नोचकर 'सीते-सीते' चिल्लाते रहे.

सीते ! समझ में नहीं आता
    मैं क्या कहूँ,
    दुनियाँ की भाँती मैं भी तुझे पूजूं
    अथवा तेरी दयनीय दशा पर
        आंसू बहाऊं.
समय बदल गया, पर
    ये छद्मी संसार न बदला
राम के निकालने पर
    यदि तू घर से न गई होती
अत्याचारों से क्षुब्ध हो
    यदि आत्महत्या न की होती
तो आज अपनी बहनों की तरह
    तू इस दुनियाँ में नहीं जानी जाती.
तू कठपुतली बन नाचती रही
संवेदनहीन बन
    प्रत्येक जुर्म सहती गई
मुर्दे की भाँती
    हर खेल का अंग बनती गई
इसलिए तू आज
    देवी है, पूजनीय है,
    प्रेयसी है, पत्नी है.

क्या तुझे पता है, आज के युग में भी
    जो औरत खामोश है
वह सुशील, अच्छी और संस्कारी कहलाती है.
    जो अन्याय के विरुद्ध बोलती है
वह मानसिक विकृति की शिकार कहलाती है.
औरतों का बोलना तो फूटे ढोल को भी नहीं सुहाता
    फिर पुरुष को..............?
यदि रामराज्य का एक अंक यही है, तो
इस देश के भविष्य का क्या होगा ?
      

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