दिल खोलकर करो
आँखें मूंद लेने से
सच्चाई बदल नहीं जाती,
होंठ भींच लेने से
गाली दब नहीं जाती,
मुट्ठी बाँध लेने से
थप्पड़ लगाने की टीस कम नहीं हो जाती,
पैर पटक देने से
दौड़ने का उत्साह कम नहीं हो जाता,
सो जाने से
दिमाग सोचना बंद नहीं कर देता,
लिखना बंद कर देने से
घटनाएँ और उद्वेलन बंद नहीं हो जाती;
करो, सब करो
दिल खोलकर करो,
परन्तु
अपने दायरे में रहकर करो,
जिससे दूसरों को
न हो तकलीफ,
और तुम भी
न बन सको कुंठित.
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