बुधवार, 9 मई 2012

Chaukavan Rad (Kahaani)

 
चउकवँ राड़ 

       नहीं... मैं एक पाँच साल के बच्चे से बियाह नाहीं कर सकती

       काहे नाहीं कर सकती, ऊ तोर रखवाला रहेगा, घर में खाये-पीये के मिलेगा ही... पूरे धन-जायदाद की मलिकन रहोगी, जिनगी आसानी से कट जायेगी...

       पर ईया....

       कुछू नाहीं... डरने की का बात है. खावो-पीयो... ओहुके पालो-पोसो... थोर और समय गुजरेगा तब तक तो उ जवान होही जायेगा. सर पर सवांग क साया बहुत ही जरूरी ह, खासकर अपने मरद क... नाहीं त दुनिया औरतन के कच्चा काट खात ह. बच्चा... हमार ईज्ज़त अब तुहारे हाथ में है.

       ईज्ज़त...

       वैसे भी भगवान हम सबके मुँह पर कारिखा पोत दिए हैं, नाहीं त तू चउकवँ राड हो जाती

       राड़...

       सुनते ही नीलम का मुँह करिया झांवर हो गया... आँसू पलक तक आते-आते ठहर गया, बिन गवनहरू लड़की अपने परानी के खतीर रो भी नाहीं सकती.

       

       कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि छोटका भाई के जनम के दस दिन बाद ही बाबू जी बलड कैंसर की बिमारी से तड़प-तड़प कर इसी ओसारे में चल बसे. हम दो बहने दो भाई बडका बाबूजी के सहारे पलने लगे. वे पालते क्या थे बेगारी भठते थे. मरे बैल की तरह बाबा-ईया और हम सबकी बैलगाड़ी खींचते थे. अम्मा खेत में काम करने निकल पड़ी, कटनी-सोहनी के साथ-साथ गाय भैंस पालने लगी. तब जाकर कइसो गुजारा होता था. इसी खींचा-तानी में हम भी छ: तक पढ़ लिए. लेकिन रोज-रोज बड़की माई क ताना करेजा छलनी कर देता था, कुछ जवाब दे देने पर बड़का बाबूजी अलगउजी पर उतर आते थे. बड़का बाबा भी हार मानकर अलगाने की बात करने लगे, लेकिन छोटका बाबा सबको एकवटने में लगे रहे. पर ईया अपनी सवारथ भरी आँखों से मुलूर-मुलूर देखती रही और कहती कि जो हमार सेवा-टहल बजायेगा, हम उसी में रहेंगे. उन्हें एक बार भी खयाल नहीं आया कि वैधव्य के दंश के साथ एक विधवा अकेले चार-चार बच्चों को कैसे पालेगी? आखिरकार बड़े बाबूजी के हिस्से में दादा जी और मझले बाबूजी  के हिस्से में ईया आयी. छोटका बाबा हम लोगों के साथ खड़े हो गयें; हमरे त परिवार नाहीं ह, पर इह लोग हमार परिवार हैं. जब तक जीयेंगे हम इनके साथ खड़ा रहेंगे. हमार राड़ पतोहि आखिर अपने चार-चार लइकन के साथ अकेलअ कैसे पालेगी.  जुग जमाना एतना खराब ह. भगवान न जाने कवने पाप क सज़ा दे रहे हैं.

छोटका बाबा के सहानुभूति का गाँव वालों ने अलग ही मतलब निकाला. सबने माई और बाबा के रिस्ते पर ऊँगली उठाई. पर दोनों बड़ी ही सच्चाई और ईमानदारी के साथ हमन के पाल-पोस के बड़ा किया. धीरे-धीरे गाँव वाले अपने-आप चुप हो गए.

       दस-बारह बरस के होते होते बाल फटने लगी, लोग हमरे बियाह के खातीर परेशान होने लगे. अम्मा तो अपनी धराऊ साड़ी के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा करके वियाह अउर गवने क सामान भी जूटाने लगी. खटिया-मचिया से लेकर मउनी-दऊरी, दही-तोपना, बटुली-बटूला और ओकर तोपना, मेजपोस, परदा, गेट सब सी-बीन कर रखने लगी, छठवीं कलास में ही बियाह हो गया. बियाह के बाद भला कैसी पढ़ाई. पढाई तो सिर्फ बियाह करने और पति को चिट्ठी-पतरी लिखने के लिए किया जाता है.

       मांग में सेनूर पड़ते ही हमने उनको अपना पति-परमेश्वर मान लिया, मन ही मन उनके ऊपर सबकुछ निछावर कर दिया. गवने की तइयारी हम भी करना शुरू कर दिए, काहे कि एकबारगी में ही सब कुछ होता नाहीं. चुप-चुप ही सखियों और भाभीयों से नीक-नीक ऊन मँगाकर उनके खातीर स्वेटर, कूलही और मोजा-दस्ताना सब बीन लिए. बियाह में घुँघट एतना था कि उनको देख ही नहीं पाये थे, लेकिन ऊज्जर-ऊज्जर गोड़ देखी थी. येसे अन्दाज त लग ही गया था कि गोरहर लोगों पर कैसा रंग खिलता है. सोचा था कि गवना जाड़ा में ही होता है.  गौना के पहली रात को जब अपने हाथ का सिला-बीना सामान दुँगी तो उ त हम पर मर मिटेंगे... जब-जब हमरे हाथ क बीना सुईटर पहनेंगे तब-तब हमरे प्यार क गर्मी उनकी संगी-साथी रहेगी.  

       बियाहे के तीसरे साल में ही गवने क दिन धरा गया. सब समान धराने-उसराने लगा. माई से बिछुड़ने क दु:ख और उनसे मिलने की खुशी एक साथ मेरे मन में हिलोरे लेने लगी. जैसे नदी पहाड़ की गोद से निकलकर सागर में समाने जा रही हो. अपने बाबूजी के मरने के बाद हम ही और छोटका बाबा माई क सहारा थे. बाबा कितनाहूँ तो का, मरद जाति. हर बात तो उनसे माई नाहीं कह सकती थी. येसे हमही माई के सबसे करीब रहें. माई एक महीने पहले से ही रो-रोकर घबराने लगी थी. उसको ये चिंता खाए जा रही थी कि गवने में कहीं कवनो सामान घट न जाये. औकात से जयादा तैयारी में जुट गयी थी. टेंटवाले, हलवाईवाले, कहार-कोहार सबको सट्टा दिया गया. कपड़ा खरीदकर बेलाऊज-साया सिलाने खातीर दर्जी को दिया गया. मन में खुशी क फूल खिलने लगा कि अचानक फूल क पराग गिरकर झहरा गया. गवने के सोलह दिन पहले खबर आयी कि उनका एक्सीडेंट हो गया. और फिर उसी एक्सीडेंट में...

       तब से लेकर हमरे जिनगी के साथ-साथ इ घर में भी सन्नाटा छाया है. न खाये क मन न पीये के, न घर में रहने का मन न ही कहीं जाने का, न कवनो खुशी न ही कवनो दु:ख. सब ने हमारी गरीबी देखकर हमसे नाता तोड़ लिया. माई क आपन घाव भरा ही न था कि उसपर हमारा बैधव्य.. मुँह के बल गिर पड़े हम लोग. माई रो-रोकर भगवान को कोसती रही कि हमके जो किये सो किये, हमरे बेटी के उह दुख काहें दिये. जीवन में हम ही अभागिन थे कि पति अउरी दामाद दूनो चल बसे. जेतना दु:ख मरदा के गईले नाहीं हुआ ओतना दमदा के गईले हो रहा है. कवन गलती हो गयी थी नाथ... अरे हमके उठा ले गये होते पर हमरे परान के राड़ काहे बनाये.

       माई के रोने से बन क पत्ता झहरा जाता था. पर माई से जियादा अभागिन मैं थी कि माई तो रोकर अपना मन हल्लुक कर लेती थी लेकिन हम त रो भी नहीं सकते थे. बियाहे के बाद और गवने से पहले की लड़की क पति न तो आपन होता है न ही पराया. पति नाम क मोहर तो लग जाती है पर उससे कोई सुख-सवारथ की इच्छा रखना पाप ही माना जाता है. अउर त अउर उस पति के अलावा किसी और के बारे में सोचना, बात करना अउरी बड़ा पाप माना जाता है. ऐसे में बिन गवनहरू लड़की अपने पति के खातीर रोये तो कइसे रोये. फफक-फफककर खूब रजाई में रोती रहती थी. ईया देखती तो कहती; जब गवना नाहीं हुआ तो ऊ तुहार मरद काहे का. उ दुसमन हो गया दुसमन. ऐसा सामाजिक चाल मकडी के जाल से कम नाहीं. जबतक ऊँ जिये तबतक हमार सब कुछ उह थे और मरने पर दुसमन हो गए, कइसे..?  जहिया से ये सासू चुटकी सेनूरवा, तहिया से स्वामी हमार गीत अब हमरे खातीर झूठ हो गया. सेनूरदान के समय से उनसे परेम क खुशबू हमरे तन मन में समा गया, लेकिन हम का करें यहां तो फूल सूखने के बाद खुशबू भी जिनगी से लोग मचोड़ देते हैं. करेजा काठ बन गया है.

       सच तो इ है कि दुनिया के नज़र से बचाने के खातीर छोटहने पर बियाह कर दिया जाता है और बियाह के बाद उस मरद के नज़र से भी बचाया जाता है कि कहीं लड़की बदचलनी न करने लगे. लेकिन दुनिया इ नाहीं समझती कि बियाह और गवने के बीच लड़कपन क सपना हम सबको कोढ़ी बना देता है. तिरसिया के मरद ने गवने से पहले ओके फोन कर दिया, ओकरे पास त फोन था नाहीं, त उसके मरद ने गाँव के लइका के फोने पर फोन किया. तिरसिया उस समय गोबर फेंकने गई थी त उसकी माई ने बतिया लिया. इ बात न जाने कइसे ओकरे बाबूजी को पता लग गई. फिर तो उ एइसन हड़कंप मचायें कि गाँव दंग रह गया. तिरसिया के माई को खूब लाठी-लाठी मारे और तिरसिया को खूब गारी देने लगे; जवानी मान में नाहीं आ रही ह का, कहलवा दें का कि गवना कराके उठा ले जा. तेही बोली होगी तब न उ फोन किया था, नाही त गाँव क लवण्डा क नम्बर ओके कइसे मिलता... तिरसिया लाजन धंसती जा रही थी, उ कहती रह गयी कि हमके कुछ नाहीं पता, लेकिन ओकर बात सुनता कवन. रो-रो कर ओकर आँख फूलके लाल गुब्बा हो गया.

       हमारा भी बहुत मन करता था उनसे बात करने का, लेकिन तिरसिया क हालत देखिके हम मन मार लिए थे कि हमरे बाबूजी नाहीं है तो लोग अउर उधुआ उठायेंगे. अउर पता नाहीं ऊ हमसे बात भी करेंगे कि नाहीं, पता नाहीं ऊ हमरे बारे का सोचेंगे. फिर हमहूँ मन मसोसकर रह गए. आज ऊ हमरे जिनगी से हमेसा-हमेसा के लिए चले गए फिर हम उनके भूल नहीं पा रहे हैं. अब पछताते हैं कि उ जवन भी सोचते कम से कम हम एक बात उनका बोली त सुन लेते, का पता कि उ हमसे कुछ अपने दिल क बात ही करते.

       गवने के खातीर जो साड़ी-वाड़ी सिलाया था उ सब फूँका गया. साथ ही हमार सपना भी राख हो गया. एइसा लगता है कि हम अपने पति से जयादा पति नामक मोहर से परेम कर बैठे थे, सिन्दूर की पहचान से परेम कर बैठे थे, तभी तो आज तक हम उस बिन देखे मनई को याद करके रो पड़ते हैं. बिना कोई रिस्ता बने ही हम उनकी ओर इतना झुक गए कि आज उनके बगैर अपने जिनगी के बारे में सोच भी नहीं पाते. कइसे काटूँगी अकेले एतना बड़ा जिनगी...

       

       ए मुँहझौसी... कवनो काम-धाम नाही ह का, जहाँ बैठती है दूब जाम जाता है....” (ईया गरियाते हुए चली गयी)

       का करें, कवनो काम-धाम में मन नाहीं लगता, अगर करती भी हूँ तो कुछ न कुछ गलती हो ही जाती है, तबो डाँट-फटकार सुनने को मिलती हैं. जियल हराम हो गया है. पहले डाँट पड़ती थी तब हम सोचते थे कि गवनव तक न डाँटेंगे, ओकरे बाद त हम अपने घर चले जायेंगे. लेकिन अब....

       माई क तबीयत दिन-ब-दिन बिगड़ रही है, घर में पइसा न कौड़ी, दवा कइसे कराऊँ. रोपनी-सोहनी से जो पइसा मिलता है उ दू जून की रोटी में ही खतम हो जाता है.



       सुन निलमी... काहे बियाह के खातीर तइयार नाहीं हो रही.. (कहते हुए माई घस्स से बैठ गयी)

        माई अब तुहऊँ... उनके गुजरे हुए साल भर भी नाहीं हुए औऊर हम कइसे किसी और की मेहरारू होने के बारे में सोचें..

       अरे तोके सोचे खातीर कवन कह रहा है, सोचे खातीर हम हैं न... ईया बाबा सब तइयार हैं. देख बेटी.. हमहूँ करेज्जा पर पाथर रखके कह रहे हैं... तू अबहिन छोटी हो, तुहके नाहीं पता कि मरने के बाद आपन परानी दुसमन बन जाला. इ कहो कि गवना नाही हुआ था, अगर गवना हो गया होता तो तुहार दूसर बियाह नाहीं हो पाता. कुवाँर-कचनार लड़की हो बियाह हो जायेगा त तुहार जिनगी सुधर जायेगी. तू नाहीं जानती एक राड़ की... ऊपर से जवान राड़ क जिनगी कइसन होती है, पूरा गाँव नोचने खाने को दउड़त है. कवनो खर्चा नाहीं देते लेकिन ईज्ज़त पर हाथ साफ करने खातीर और ईज्ज़त उछालने के खातीर सब तैयार रहते हैं. राड़ क जिनगी कवनो जिनगी नाहीं होती है. पहले पति के चिता पर मेहरारू सति हो जाती थीं, कम से कम मरके सरग तो मिलता था लेकिन अब हर दिन हर रात समाज चिता पर चढ़ाता है जिससे हम हर रोज मरकर भी नाहीं मरते और जीकर भी नाहीं जी पाते. बियाह के बाद कम से कम तुहार ईज्ज़त तो बची रहेगी.    

       बेटी... हम तुहार दुसमन नाहीं हैं. तू सोच तुहरे पीछे दो भाई और तुहार छोटकी बहिन हैं, उनका का होगा.

       तुहार सास-ननद गाँव के बहरा मिलने आई थीं. बड़ी भलमानस हैं ऊ लोग. तुहार सास रो-रो कर पपिहरा हो गई हैं, कह रहीं कि जवन गहना-कपड़ा हम दिए हैं वापस नाहीं लेंगे, एतना लगा-बझा के हम बियाह किए थे अपने बेटा का अऊर रऊरे भी की थी, सो सारा खर्चा भी बच जायेगा. बस दू जोड़ी कपड़े में बिदा कर देना.

        तुहार ननद त जइसे गऊँ हैं, उ तो कहने लगीं कि हमके रांड़ होने से कवनो परेसानी नाहीं है. हमरे भाई क एकलौती अऊरी आखिरी निसानी बची है. हमरे अँचरा में हमरे भऊजाई को हमरे पतोहि बनाकर डाल दो. रहल बात उनके छोटकी बहिन क त जवन हो सकी सब लगा-बझा के उनहू क बियाह हम करा देंगे.

       अब तू ही सोच कवन एतना सबके बारे में सोचता है. सोग पडी लड़की के केहू नाहीं अपनाता है. छूटकी क भी बियाह उ लोग करा देंगे. बेटी... हमहन में त एतना दम नाहीं है कि हम तूहार बियाह फिर कहीं अच्छे घर में करा पायें, जवन था सब वो बियाहे में लग गया. अब त दू जून की रोटी मिल जाए उह ढ़ेर है. अब जो कुछ सोचना है उ छोटकी के बारे में सोचना है कि उहो कइसो निबुक जाए, और दूनो लइके कइसो पढ़ लिख लें. जब भगवान हमहन के मुँह पर राड़ क करिखा पोत दिए हैं, तो कईसो जिनगी बिताना ही है. हम तो अपने बचवन क मुँह देखके कइसो बिता रहे हैं, पर तूहरे तो कवनो आधार नाहीं है.

       देख तुहरे ननद क एक ही बेटा है, बियाह के बाद दूनो जगहीं क धन-दऊलत तुहार अउरी तुहरे लइकन-फइकन क ही होगा. तू ठीक से सोच ले बेटी...

       इ सोचे चाहे न सोचे, हम बियाह कर देंगे. वइसे भी बियाहे में लइकनीन क मन कवन पूछता है (ईया बड़बड़ाते हुए चली गयी)



       अगर हमरे बियाहे से सबका भला होता है, त हम बियाह कर लेंगे. लेकिन का हमरे मरे हुए पति हमें इस बात के लिए हमें माफ कर देंगे, वे दूसरे के साथ हमके देख के भूत बनके नाहीं पकड़ेंगे? वइसहों बियाहे से पहले उनको सोखा-ओझा से बइठवाना पड़ेगा. पर हम त उनसे परेम करते हैं, फिर हम किसी और मरद से बियाह कइसे कर सकते हैं...

      नाहीं...हमके सिर्फ अपने बियाह के बारे में सोचना चाहिए...



       माई... हम बियाह कर लेंगे. उसके बाद त आप लोग खुश रह पाओगे न, का सचमुच उ लोग छूटकी क बियाह कर देंगे.

       हँ..हँ.. उ लोग कहे हैं तो करेंगे ही.

       अगर नहीं करें तो...

       कइसन बात करती हो, सुभ-सुभ बोलो. हमके पूरा भरोसा है.



       हम बियाह कर लेंगे.. नीलम कई दिनों तक सोचती रही. उधर बियाह की तैयारी होने लगी. नीलम ने खाना-पीना छोड दिया. चेहरा उतर आया. ईया कहने लगी लगन लग गई है, बडा सुभ बियाह है हमरे बहिनी क.

       नीलम दुविधा में जीने लगी. बियाह होगा तो परिवार क भला होगा, हमरो जिनकी जइसे-तइसे कट जायेगी. लेकिन कइसे...? उ तो पाँच साल का लइका है, एतना छोट त हमार छोटका भैयवा है. हम उसे पालेंगे, तब उ बड़ा होगा. कम से कम हम उससे पंद्रह-सोलह साल के बड़े होंगे. जब इ जवान होगा, तबतक हमार आधी उमर बीत चुकी होगी. फिर उ बच्चा हमरे बारे में न जाने का-का सोचेगा. हम सबकुछ जानते हुए कइसे उस बच्चे की जिनगी बरबाद कर दें...

       वह बड़हन होगा तब का हमरे रिस्ते को अपना लेगा, का जवान होने के बाद उ हमसे प्यार करेगा,  वह मुझे अपनी पत्नी का दर्जा देगा या महतारी का ? का उ हमसे नफरत नाहीं करेगा, का उ हमरे परिवार अऊर अपने माई-बाप को माफ कर पायेगा ?  अगर रिस्ता भी हमसे बना ले तबो उ मन से हमें नाहीं अपनायेगा... उ हमरे साथ कहीं जाने में भी लजायेगा काहें कि हम उनके आगे बुढ़ हो चुके होंगे. वह  अपनी जमीन जायदाद सब तो दे देगा लेकिन पत्नी का दर्जा...??? आखिर उनका भी तो मन होगा अपनी उमर की मेहरारू लाने का, फिर उ हमरे साथ काहे जिनगी गुजारेगा...

       आज हम जान रहे हैं कि अपने सवारथ के खातीर पूरा परिवार एकवट के हमारा बियाह कराना चाहता है, लेकिन उ बच्चा त इहो नाहीं जानता कि बियाह क मतलब का है. हमार जिनगी त मेहनत मजूरी चाहे यहाँ चाहे वहाँ करके गुजर जायेगा लेकिन उ बच्चा के बारे में केहू नाहीं सोच रहा. हम उनको पाल-पोस के उनके संरक्षक बन जायेंगे लेकिन पत्नी कभी नाहीं बन पायेंगे. हम औरतन के गाय समझके कवनो भी खूंटे में बाँध दिया जाता है, लेकिन उ तो मानूस है. वह हमरे साथ काहे बंधना चाहेगा. आखिर धन-दौलत ही तो सब-कुछ नाहीं होता, मनुस्यता भी तो कवनो चीज है. हम का करें, कुछू समझ में नाहीं आ रहा. एक ओर हमारा परिवार, बहन की जिनगी अऊरी दुसरे ओर उ बच्चा क जिनगी..



       दू अछर पढ़ का लिहनन, अपने आपके पंड़ित समझने लगनन. सहर से आया है.. इह सीख के आया है.. लतखउका... ईया गरियाते हुए कपारे पर खाची रखे चली आ रही है.

       का ह ईया”?  नीलम ने कांपती आवाज में पूछा.

        अरे हऊ रामरतना क सपूत सहरिया गया है, अधिकाराम... तुहरे बियाह के बारे में सुनते ही भड़क गया और कहने लगा कि काहे ओकर जिनगी बरबाद कर रहे तुहन लोगन. बिधवा ह त का हुआ कहीं न कहीं बियाह हो जाई. कह रहा था पाँच साल के लइका से बियाह कराओगे तो जेल में ढुकवा देंगे. लतमरूआ..          भला बता... कवन समझदार लइका राड़ी का हाथ थाम्ही.  जेल में ढुकवायेगा... इह दिन देखना रह गया था. हमन के दिन-रात क कवनो हैं नाहीं, कइसो तुहार बियाह हो जाता तो छोटकियो क पार-घाट लग जाता. बियाह करके हमनो तर जाते. रहल दूनों लइकन क बात त उ त लवण्डा जाति हैं, अपना कमायेंगे खायेंगे...

       बस ईया बस... उ लईका हैं तो कमा-खा सकते हैं अउर हम लइकी हैं त काहें नाहीं. अरे मेहनत मजूरी ही करनी है तो जइसे वहाँ करेंगे वइसहीं यहाँ भी कर लेंगे. अपने सवारथ के खातीर एक बच्चा क जिनगी बरबाद कर देना कहाँ क समझदारी है. का पता कि हमरे बियाह के बाद छोटकी क बियाह उ लोग करें ही न, छोटकन के पढावे खातीर पईसा ही न दे, फिर तब तुम लोग हमें कवने करे ढ़केलोगे...

       चुप रह.. बहुत बोलने लगी है, हमके पूरा विसवास ह कि उ लोग आपन वचन पुरावेंगे. और उ बच्चा कईसन, अब उ तोर भतार ह भतार... होखे वाला मरद है, अब उह तुहार सब-कुछ ह.

        नाहीं है हमार मरद... (तमतमा उठी नीलम) मेरा मरद अब ये दुनिया में कवनो नाहीं है, अऊर उ पाँच साल क लईका हमार मरद कब्बो ना बन पायेगा. उ बड़हन होके हरदम हम सबको कोसेगा. मति मारी गई है तुम लोगन की. सच त इ है कि अपने सवारथ के खातीर तू लोग हमार सौदा कर रहे हो, उहो उसके साथ जिसे बियाह क मतलब भी नाहीं पता है...

       अरे सोगियानउनी... मुँह क करिखा छूट जायेगा, अकेल वेवस महतारी राड़ बेटी लेके कवने-कवने घाट क पानी पियेगी, समझती काहे नाही. कवनो सौदा नाहीं हो रहा तुहार...”

       हो रहा है हमार सौदा... तुम लोग लालच में आन्हर हो गए हो, उ बच्चा से बियाह करके हम खुद अपनिय आँख से गिर जायेंगे. अब हम तुहन के सामने एकदम नाहीं झुकेंगे... छूटकी क बियाह ही करना है न... त हम करेंगे अउर अपने बलबूते पर... भगवान ने सुहागिन की किस्मत नाहीं दी त का हुआ, गुन-ढ़ंग और जांगर तो दिया है. रोपनी-सोहनी, कटिया-दवरी के साथ-साथ कढ़ाई-सिलाई सब करेंगे. एक-एक रूपिया जुटाकर दूनों भैयवन के पढ़ायेंगे अऊर छोटकी क बियाह भी करेंगे. इ राह जरूर कठिन है लेकिन एतना भी कठिन नाहीं कि हम कर न सकें. इ सब करके कम से कम हम अपने जिनगी भर उ बच्चा क जिनगी बरबाद करने के अपराधबोध से तो बच जायेंगे. तुहन लोगन कुछू कर लो लेकिन हम बियाह नाहीं करेंगे.

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       बिहानअ जाकर उनके घर से जो कुछ मिला था, रूपया- पैसा, कपड़ा-लत्ता और जेवर सब लउटा देना अउर कह देना हमने बियाह करने से मना कर दिया है.





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