मनु ने कहा है... और हम ?
मनु ने मनुस्मृति में लिखा है-
पत्नी के भरण-पोषण कि जिम्मेदारी पति पर है.
परन्तु मनु ने यह नहीं बताया कि
यदि भरण-पोषण करते हुए पति
पत्नी को नित-प्रति ताना मारे
तो पत्नी पैसा कहाँ से लाये ?
मनु ने मनुस्मृति में लिखा है-
पति को खाना खिलाकर ही पत्नी खाए.
परन्तु मनु ने यह नहीं बताया कि
पत्नी को पति से पहले भूख लग जाए
तो वह क्या खाकर भूख मिटाए ?
मनु ने मनुस्मृति में लिखा है-
स्त्री सदैव किसी न किसी पुरुष के आधीन रहे.
किन्तु उन्होंने यह नहीं बताया कि
जब रक्षक ही भक्षक बन जाए
तब वह किसके सामने गूहार लगाए ?
हे महर्षि मनु !
हम साधारण नारी हैं
हमें 'पैसों की भूखी' ताना सुनाए पर
बहुत तकलीफ़ होती है
मेरा स्वाभिमान खंड-खंड बिखरता है
तब मन करता है
कहीं से भी पैसा लाकर
उसके मुंह पर दे मारूँ
और अपने स्वाभिमान को बिखरने से बचा लूं.
हे महर्षि मनु !
मैं भी मनुष्य हूँ
मुझे भी भूख लगती है
वह रात-बिरात बाहर से खाकर आये
और मैं भूखी सो जाती हूँ
तब मैं ही नहीं मेरी आत्मा भी
नींद में भूख से बिलबिलाती है
तब मन करता है
छोड़ दूं पतिव्रता का ढोंग
और बिस्तर के बजाय
रोटी का हुस्न चखूँ.
हे महर्षि मनु !
मैं भी उसी की जैसी हाड-मांस से बनी हूँ
फिर उसे आज़ादी औ' मुझे यह बंदगी क्यों
अपराधी खुलेआम घुमे और
मैं ही जेल में कैद रहूँ
उसका जब मन करे तब वह
मुझे नोच-खरोच कर चला जाए
और मैं अपने घाव का सबूत देती फिरूँ
नहीं...
मेरा भी मन करता है
मैं भी पुर ब्रम्हांड में स्वछंद विचरण करूँ
और अपना घाव सेंककर फौलाद बनाऊं
सारे अपराधियों को एक साथ सजा दे सकूँ
ताकि दुबारा कोई न कर सके किसी को
बिना उसकी ईजाजत के
और हम बना सकें खुद को संपूर्ण.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें