गुरुवार, 12 अगस्त 2010

Kaash ! Koi Mujhe Chaahe

     काश ! कोई मुझे चाहे

काश ! कोई मुझे चाहे.

नयन के मसखरे, गालों का गुलाबी रंग
होंठ की लाली, बाली की सुर्ख छनक
सादगी के सामने हो जाए बेकार,
कृत्रिमता छोड़ मेरी बदसूरती को दुलराये
काश ! कोई मुझे चाहे.

गर्दन सुराहीदार, पालिश का संसार
नागिन से बाल, मतवाली चाल
शीलता के आगे हो जाए अवसाद;
एक अक्स ऐसा बने
     जो रेत, पानी पर भी ठहर जाए
काश ! कोई मुझे चाहे.

कंठ की सुरीली आवाज, फैशन का आगाज़
रंगीन दुनियाँ की तंग परिधान, दौलत बेसुमार
सब भूल ज्ञान-दीप जलाए;
मेरी देह छोड़ मन को सराहे
काश ! कोई मुझे चाहे.
 

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