बुधवार, 18 अगस्त 2010

Kaash !!!

                   काश !!!
तड़पती आहों का सैलाब, उमड़ता है हिय में
काश ! तुम आ जाते फिर से मेरे जीवन में.

सपनों का वो संसार, हक़ीकत का प्यार
रस्म-ओ-दुनियाँ की दरकार, ओ मेरे राजकुमार
मृदुभाश बन निकलते, मेरे इन लबों से
काश ! तुम आ जाते, फिर से मेरे जीवन में.

आँखों का अन्धकार मिटा, बन जाते तुम प्रकाश
लक्ष्य का तू ध्रुवीकरण, जीवन का उजास
प्रगति-कज्जल बन, समा जाते मेरे इन नैनन में
काश ! तुम आ जाते, फिर से मेरे जीवन में.

दिनों के देवता, जीवन का अधिकार 
समाज को दे ममता, ले लेखनी की तलवार 
विचार बन आते, मेरे लेख-उपवन में 
काश ! तुम आ जाते फिर से मेरे जीवन में.

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