मंगलवार, 12 मई 2020

CHUDAILEN

साहित्य नंदिनी (दिसम्बर, 2019) के 'चर्चा के बहाने' स्तम्भ में प्रकाशित...



पुस्तक - चौपड़े की चुड़ैलें
लेखक – पंकज सुबीर

चुड़ैलें

ऐसी क्या वजह होती है जब घेर लेती हैं हमें चुड़ैलें, हमारी ज़हन को, हमारे समाज को ? जो दिखते हुए भी दिखायी नहीं देतीं और दिखायी देते हुए मानी नहीं जातीं और बन जाती है डर का कारण ?  चुडैलों की दास्तान क्यों हो जाती हैं इतिहास में गुम और भूतहा हवेली के रूप में ही डरावनी बनकर सामने आती हैं ? और नहीं आतीं है तो संवेदना के दहलीज़ पर...! ऐसी क्या वजह है जो  वे नहीं बन पातीं एक औरत ?
हालांकि वे होती हैं कई-कई रूपों में हमारे सामने । उनकी गंध फैली रहती है चौपड़ों से निकल कर खेत- खलिहान, सड़कों, शहरों तक । जिससे वे हो जाती हैं यत्र-तत्र शिकारियों का शिकार और शिकार होने के बाद खड़ी कर दी जाती हैं अपराधियों के कटघरे में... ।  
ऐसा नहीं है कि ये चुड़ैलें सिर्फ अनपढ़ होती हैं जो छुप-छुप कर सपनों को पूरा करने की कोशिश करती हैं अथवा बची-खुची जिन्दगी में रह-सह कर हो जाती हैं किसी के हवस की शिकार... बल्कि होतीं कुछ चुड़ैलें पढ़ी-लिखी भी बहू-बेटी के रूप में । जो चुनना चाहती हैं अपनी मर्जी से शिक्षा का क्षेत्र, अपना करियर, अपना जीवन-साथी । लड़-झगड़ कर मिल जाती हैं कुछ हद तक उनकी मंजीलें भी । लेकिन नहीं मिल पाता है चुड़ैलों से इतर दुनियाँ में उन्हें सम्मान । देखा जाता है उन्हें बार-बार संदेह की नज़रों से और उठाये जाते हैं बार बार उन पर ऊँगलियाँ । चरित्रहीनता उनमें से है सबसे अधिक आसान सी ऊँगली ।
ऊँगली काट लेने की पूरज़ोर कोशिश भी होती है उन लेखिका चुड़ैलों की । उनकी कहानी शुरू होती हैं पहले घर से । चार किताबें लिख लेने वाली आखिर परिवार का अवमूल्यन ही तो कर रही होती हैं ! बाहर तो खामोशी का बाज़ार छा जाता है ! बाज़ारवाद में भले ही उनकी खरीदारी उनकी देह से हो, लेकिन गुण तो धेला भी न बिके !
ऐसे में पंकज सुबीर की चौपड़े की चुडैलें खड़ा करती हैं अनेक अनगिनत प्रश्न ? जो गुमनाम हो कर भी दाग देती हैं समाज पर ऐसे अनेक प्रश्न, जिससे खाली पड़ा है हमारा इतिहास और साहित्य । उनकी गंध सिर्फ चौपडें में ही नहीं फैली हैं अथवा सिर्फ चौपड़ों पर पहुँचने वालों को ही नहीं महसूस होती है बल्कि पूरे इतिहास को महसूस होती है । पर महसूस होने को हकीकत न बनने देना वर्चस्ववादी सत्ता की कूटनीतिक राजनीति ही तो है ।
तो क्या औरत के सर पर मर्द का हाथ न होने से वे चुड़ैले ही मानी जायेंगी ?

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