बुधवार, 8 जनवरी 2020

Parivaar Mein Ham Aur Hammen Parivaar

साहित्य नंदिनी (नवम्बर, 2019) के 'चर्चा के बहाने' स्तम्भ में प्रकाशित...



पुस्तक – परिवार और हम
लेखक – भगवती प्रकाश

परिवार में हम और हममें परिवार

आज के समय में जहाँ व्यक्ति संयुक्त परिवार से एकल परिवार और एकल परिवार से एकाकी जीवन की ओर उन्मुख होता दिखाई दे रहा है, ऐसे समय में परिवार और हमजैसे पुस्तक का लिखा जाना कहीं न कहीं पारिवारिक चेतना उत्पन्न करने का प्रयास है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पारिवारिक विघटन  के समय में पारिवारिक मूल्यों को समझाने की एक पहल है जो धर्म-ग्रंथों एवं इतिहास में भरे पड़े हैं परंतु जीवन के आपा-धापी में इन्हें समझने के लिए समय नहीं है । व्यक्ति आधुनिक चक्रव्यूह में अपनी जड़ों को भूलता जा रहा है । किंतु परिवार वह जमीन है जहाँ व्यक्ति अंकुरित होने के साथ-साथ पुष्पित-पल्ल्वित भी होता है । किंतु आज व्यक्तिवाद की प्रमुखता के कारण व्यक्ति अपनी जड़ों को भूलकर तनें पर घर बनाना चाहता है परंतु वह भूल जाता है कि आँधी तो दूर, हवा का हल्का-सा झोका भी उसे आहत कर जमीन पर गिरने के लिए विवश कर देता है ।
ऐसे में हमें हमारी जड़ों को जमीन पर मजबूती के साथ टिके रहने के लिए इमोशनल कोशण्ट (Emotional Quatient) संबल प्रदान करता है और परिवारिक ऑक्सीजन भी देता है । आखिर परिवार में रहन-सहन के तौर-तरिके, एक-दूसरे का सम्मान करना और एक दूसरे का महत्त्व समझना ऑक्सीजन ही तो है । इसके लिए लेखक इमोशनल इण्टेलिजन्स (Emotional Intelligence) के बजाय इमोशनल कोशण्ट (Emotional Quatient) को महत्त्व देते हैं । जो भावनाओं के स्तर पर सबमें एक साझा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है । जिसमें व्यक्तिगत मूल्य प्रभावी न होकर नैतिक-मूल्यों से सम्पुरित पारिवारिक मूल्य प्रभावी होते हैं ।
किंतु प्रश्न यह है कि क्या एकल परिवार, लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिकता अथवा किसी कारणवश अकेले रह जाना ही अवसाद का कारण है अथवा भीड़ में भी अकेलेपन से जूझना हमारी भौतिकतावादी समाजिक विकास की नियति बन गयी है ? अथवा क्या टी.बी., मोबाइल, गेम आदि हमारे जीवन को और भी अकेलेपन के बोध से आच्छादित नहीं कर देते है ? अथवा मिथक से भरे ऐतिहासिक उदाहरण इन अवसादों से निजात दिला सकते हैं ?
इन प्रश्नों से हम सब जूझ रहे हैं लेकिन स्वीकार करने से डरते हैं । परिवार में हम और हममें परिवार को पुनर्स्थापित करने की स्वीकृति-अस्वीकृति ही पारिवारिक जीवन में विघटन और सृजन के हेतु हैं । लेखक के अनुसार, पारिवारिक जीवन और पारिवारिक कर्त्तव्य बोध कोई उपदेश की विषय-वस्तु न होकर श्रद्धापूर्वक उसका आचरण करना ही उसका सारतत्त्व है
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                                   - रेनू यादव

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