तलाश
मैं हर क्षण को इस तरह देखती हूँ
जैसे बस में सफ़र
करते समय
आँखें देखती हैं सीट पर बैठे हुए लोगों को.
लोग हमें इस तरह देखते हैं
देखते हैं जैसे
फटे चीथड़ों में नंगे रुपयों को.
मेरे विषय में चर्चाएँ होती है ऐसे
जैसे चर्चा हो रही हो
गुनाहगारों की.
मेरे प्यार की खबर फैलती है ऐसे
घने अन्धकार में
कोई चीज़ टटोल रही हूँ जैसे.
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