सोमवार, 28 जून 2010

Jaan Lo, Pahchaan Lo

            जान लो, पहचान लो
अटखेलियाँ खेलते बाल बादल से पूछो-
'किस गगन से आ रहे, कहाँ अब वास'.
बाढ़ की चपेट में धान की पुन्गियों से पूछो-
'कैसा लगता है पानी और उसका त्रास'.
बाढ़ गए धुप भरी महामारी से पूछो-
'पानी तो पी लिए अब कौन सी प्यास'.
कुटुंब बह गए ज़िंदा इंसान से पूछो-
'जीवित किसके लिए हो, अब किसकी आस'.
हाथ-पाँव मारते विमर्शियों जान लो, पहचान लो-
'क्षितिज पर लटका है अब भी सवाल'.

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