बुधवार, 23 जनवरी 2013

Shahid

       शहीद


संसार के हवन कुंड के सामने

जब बंधी थी हमारे रिस्तों

की गांठ

तब फेरे लिए थे हमने

रीति-रिवाजों के साथ

शहनाइयों के सुर में सुर मिलाकर

सुरीला लग रहा था हमारा जीवन


पर सुर को बेसुरा कर

चले गए तुम उसी रात

देश-सेवा हेतु


हेतु तो मेरे जीवन का

बस यही रह गया

तुम और तुम्हारा परिवार

तुम्हारे रिस्ते, तुम्हारी परंपराएँ...


तुम्हारे ड्यूटी में दुन्दुभी

बजती थी

और मेरा जीवन हर समय

था एक रणक्षेत्र

और मैं सुनती रहती थी

हर रोज एक नयी नई दुन्दुभी

की आवाज़


आवाज़... जो घर कर गई हैं

मेरे हृदय में

कि एक दिन तुम आओगे और

मुझे आवाज़ दोगे

पर...

ऐसा न हुआ


हुआ तो बस इतना कि

तुम आये

लौट आये बजती बिगुल के

साथ, तिरंगे के आवरण में

ताबूत को अपना कवच बना


कवच तो बना लिया था मैंने

भी तुम्हारे प्यार को

एहसास को, यादों को

तुम न होते हुए भी

होते थे हर पल मेरे साथ


साथ... जो होते हुए भी

कभी न था

सिंदुर बिन्दी और बिछुए

की सौगात के अलावा

जिससे मैं तुमसे जुडी थी

और तुम मुझसे


मुझसे तो बहुत कुछ

जुड़ गया था...

तुम्हारी प्रतीक्षा का दर्द

अपने होने न होने का एहसास

धनयुक्त निर्धन होने का आभास

परिवार के प्रति कर्तव्य का भास


कर्तव्य...

तुम बखूबी निभा रहे थे

देश के लिए

लेकिन क्या मेरे प्रति भी

तुम्हारा कोई कर्तव्य था

या अपने परिवार के प्रति

जिम्मेदारियों का एहसास

सिवाय साल में ढ़ाई महिने

की छुट्टी के अलावा ?


अलावे पर तो हर रोज

जल रही थी मैं

दिल में तुम्हारे प्यार की

ज्योति जलाए

कि कभी तुम भी रहोगे

हमारे साथ

चाहे बीस साल बाद ही सही

तुफानों को भी झेल गई

सुखमय जीवन की चाह में


सुखमय जीवन की चाह जब

पूरी होने को आई

तभी तुम छोड़ गए मेरा साथ

बीच भंवर में डूब गई नईया

देश का सफ़र तो निभा चूके

पर भूल गए कि तुम हो

मेरे भी हमसफ़र हो


हमसफ़र...

तुम तो शहीद कहलाओगे,

नवाजे जाओगे

वीरता के पुरस्कार से

पर मैं...

मैं क्या कहलाऊँगी

मेरा तो पूरा जीवन शहीद

हुआ है तुम पर

जीऊँगी मैं हर पर

तिल-तिलकर

सिर्फ मैं ही नहीं तुम्हारे

माता-पिता

और तुम्हारे परिवार के साथ-साथ

समस्त रिस्तेदार भी

शहीद हैं


हे शहीद ! बोलो...

इस शहीद पत्नी और परिवार को

कौन सा नाम दोगे

बोलो...

कौन से रत्न से हमें नवाजोगे

और कौन सा निभाओगे हमारे

लिए कर्तव्य


कर्तव्य निभाने की जिम्मेदारी

क्या सिर्फ मेरा है ?

नहीं…

मैं तो सीता भी नहीं बन सकी

कि तुम्हारे साथ जा सकूँ वन में

न ही हूँ कैकेयी या सत्यभामा

जो लड़ सकूँ तुम्हारे साथ युद्ध

नहीं है फूरसत मुझे

कि जौहर कर सकूँ

नहीं...

मैं नहीं हूँ इतनी महान

जो तुम्हारे जाने पर

न गिराऊँ एक बूँद भी आँसू

मुझे गर्व है तुम पर

पर मैं हूँ एक साधारण नारी

और मेरा जीवन भी

हुआ है शहीद...


हे शहीद...

बोलो...

अब कौन सा

वाद्ययंत्र मेरे शहीद

होने पर बजाओगे

और कौन से रत्न से

हमें नवाजोगे

या संसार के हवन-कुंड

में अब कौन सी

अग्नि जलाओगे...

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