पिट्सबर्ग अमेरिका से निकलने वाली वेब पत्रिका 'सेतु' में प्रकाशित...
लिंक - http://www.setumag.com/2018/06/Renu-Yadav-Hindi-Poetry.html
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खामोशी
सदियों
से खामोश
खामोशियों
के
बीच कहीं न कहीं
छुपाने
की कोशिश है
इच्छाएँ
अनिच्छाएँ
आँसू,
दर्द
और
खुशियाँ
क्योंकि
जानती हूँ
तुम
इन्हें
नहीं
समझ पाओगे
मेरे
काँपते होंठ
तुम्हें
गुलाब की
पखूँडी
नज़र आती है
प्यासी
नज़रों में
दिखाई
देता है समन्दर
मेरे
चेहरे की झुर्रियों
में
नज़र आता है
चाँद
पर दाग
और
मेरी पूरी देह
कोई
तिलिस्म
‘तिरिया चरितर’
!
पर
नहीं नज़र आता
मेरे
मन के कोने में
तड़पते
गीत
और
जख़्म
गुलाब
की पँखुडियों का
लहुलुहान
होकर
लाल
बन जाना
समन्दर
में घुँटती
साँसें
झुर्रियों
के बीच
छिपे
सौन्दर्य का मुकाबला
और
देह से
पूरी
की पूरी
अस्तित्व
में आने की इच्छा ।
इच्छाएँ...
आँधियों
के बीत जाने पर
गहराती
खामोशी
मुस्कराहट
की
उर्वरता
ओढ़े
खामोश
जीवन में
बिन
कहे समझ लेने
की
चाह ।
- रेनू यादव
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