बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

Is Dipawali

इस दीपावली से दो दिन पहले अनायास ही उभरी कविता -

इस दीपावली


इस तरह जलना...
तुम्हारी नियति तो नहीं !
साँझ-सकारे थके-हारे
दीप-दीप कर
बुझ-बुझ कर जलती रहो
अपनी ही आग में... !

आग...
जो तुम्हारे अंदर
धधक रही है
लोहे की गरम सलाखें बनकर
परिजनों के मृत्यु की
चिता बनकर
आत्मा में बजबजाते
घाव बनकर
औरत होने की
सज़ा बनकर...

उठो,
जलना ही है, तो
जलो उस दीये की तरह
जो चीर देती है
अंधकार की छाती...
जिसकी लपटों में आकर
मर जाते कितनेही
पतिंगे...
जिसकी लपलपाती लौ
से जल सकता है
पूरा का पूरा संसार....

उठो,
दिये से दिया
मिला कर
पसार दो अपने
अंतःकरण के उजास को... 
पसर जाओ
पुरी धरती पर
पूरे आसमान में
समा जाओ सुगन्ध बनकर
हवाओं में
फैल जाओ दीपावली की
दिये की तरह
और तोड़ दो उनके
सूरज होने का दंभ...

(उन्नाव रेप केस की पीड़िता के साथ-साथ ऐसी तमाम लड़कियों को संबोधित, जिनके जीवन में अभी भी रोशनी आनी बाकी है)

- रेनू यादव

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