सोमवार, 5 नवंबर 2012

TAZAB - 2

     तेज़ाब – 2


चमकती दमकती महकती

सबकी आँखों की चमेली

हर रोज खिलती खिलखिलाती

आँगन में और

उसी चमेली से सजाती थी

छोटे-से घर को, उपवन को

सोचती थी एक दिन चाँद भी

फीका पड़ जायेगा

इस हुस्न के आगे

सूरज भी मद्धम होगा

इसकी रौशनी के आगे

छम छम छमकते फूल

झरेंगे आँचल से

झमझमाकर समेट लूँगी

दुनियाँ की सारी

सुनहरी किरणों को



किसकी नज़र लग गई

इन चाहतों को

इस खिलखिलाते चेहरे को

अचानक मुर्झा-सी गई

किसने झौंस दिया

इन चमेली के

पौधों को

अब न रौशनी रही

न रहा सुनहरापन

न आँचल

न हुस्न

यदि बचा है कुछ

तो वह है मात्र

तड़प... जलन...

सिसकियाँ



तुम कहते थे

कि तुम मुझसे

प्यार करते हो

दुनियाँ की सारी खुशियाँ

भर दोगे मेरे दामन में

दिन तो क्या रात में भी

मुर्झाने ना दोगे

चाँद तारे लाकर मेरे

आँचल में सजा दोगे

मैं कह दूँ तो अपनी

जान भी दे दोगे



तुम्हें बुरा लगता था

मेरा ना कहना

पर नहीं बुरा लगा

मेरा अस्तित्व मिटा देना

गीदड़-भभकियों का शस्त्र

जब खत्म हुआ तुम्हारी झोली से

तब तुमने चुना कायरता का तेजाब

जिसपर नहीं काम करता कोई आब



तुम्हारा अहं मेरे ना पर

भारी पड़ा

और एक रात तुमने

मुझे मिटा देने के बजाए

पिघलने के लिए

छोड दिया कोयले की भट्टी में

फेंक गए तेजाब

बिदग-बिदक कर बदकने के लिए...

क्या यही था तुम्हारा प्यार

या थी हवस जो

न मिलने पर तुम्हारे अहं

ने मेरे जीवन का गला

घोंट देना चाहा ?



क्या कभी सुना है

किसी लड़की को किसी

लड़के के ऊपर तेजाब

फेकने की ख़बर ?

अगर फेंका होगा

तो फेंका होगा उसने अपना

अहं और समेटा होगा

तुम्हारे स्वाभिमान को

अगर फेंका होगा तो

फेंका होगा तुम्हारी

बुराईयों को

और अपनाया होगा तुम्हें

सर्वस्व



हर रोज पिघलती हूँ मैं

सिर्फ एक राख की ज़िन्दा

लोंदा हूँ मैं

तुम्हें लगा होगा कि

तुम सिर्फ मुझे

सज़ा दे रहे हो

पर सज़ा भुगत रहे हैं

मेरे माँ-बाप

भाई बहन रिस्तेदार

एक घाव लड़की मानी गई

दूजा घाव बिमार ... तेजाब



शिव ने भी कामदेव को

भस्म करने के बाद

दिया था वरदान

दूसरा रूप धरने का

पर यहाँ न तो तुम शिव हो

और न हम कामदेव



छूट जाओगे

कुछ समय बाद जेल से

जी सकोगे अपना जीवन दूबारा

फिर लुटाओगे अपना

दोगला प्यार किसी

अनजान हुस्न पर

नहीं होगा कोई अफसोस तुम्हें

और न ही मिलेगी कोई तुम्हें सज़ा…



मैं पूछती हूँ एकता का नारा देने वाले

भारत के संविधान से

क्या है कोई ऐसी सज़ा

जो मेरे तकलीफ़ के बराबर

मिल सके उन्हें भी तकलीफ़

या कम कर सके मेरे तकलीफ़ को ?

क्या है कोई ऐसी सज़ा

जिससे उनका भी चेहरा हो जाए

इतना ही विदीर्ण... विभत्स...

या मेरा चेहरा हो जाए पूर्ववत् ?

क्या है कोई ऐसी सज़ा

जिससे जाग जाए सबमें इंसानियत

या मैं पुनः इंसान बन खड़ी होऊँ ?

क्या है कोई…

अगर है तो हमें भी बताओ…

क्या है कोई ऐसी सज़ा…

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