बुधवार, 18 अगस्त 2010

Bachpan

                   बचपन

बीती यादों का सैलाब, उमड़ता है हिय में
काश ! वो दिन आ जाता फिर से मेरे जीवन में.

हंसी, ख़ुशी, उमंग, लड़कपन
खेलना-कूदना, उछालना
वो कबड्डी, सुटुर, लुका-छिपी
रोना-धोना, पतंग बनाना
बारिश में भीगना, गड्ढों में नाव चलाना
कागज़ के फूल, बांगों के झूले, रेत के टीले
घास की बाली, गोबर की मेहंदी
मिटटी के बर्तन, तलवे का दर्पण
मंदिर की घंटी, गुड्डे-गुड़ियों की शादी
गिनती पहाडा रटना, रटना औ' भूल जाना
माँ के हांथों का खाना , पिता का समझाना
राख के ऊपर दादा जी का लिखना सिखाना
न लिख पाने पर थप्पड़ खाना
रोने पर चोटहवा गट्टा और लमचुस खाना
नरकट की कलम, दुद्धी दवात
पटरी भूल खेलने लग जाना
निश्छलता से सबके संग मिल 
सपनों का प्लेन उड़ाना 
मित्र मंडली में लड़-झगड़कर
"सारे जहान से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा" गाना
एकता का नारा औ' एक हो जाना.

मन विह्वल हो जाता है सोचकर 
दुःख है की नहीं आता वो लौटकर 
वो निष्कपटता, मानवीयता, प्रेमपरकता
यदि इस उम्र में भी आ जाता, तो
मानव-मानव बन जाता.

माना की बुद्धि परिपक्व है, पर 
     उतनी ही जन्मी हैवानियत है
नेपथ्य अटल है, पर ह्रदय विकल है
सपने सजोती हूँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी आँखों में
काश ! वो दिन आ जाता फिर से मेरे जीवन में.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें