शनिवार, 28 अप्रैल 2018

स्त्री-देह को ‘आइटम’ के रूप में परोसते आइटम सॉन्ग्स


'साहित्य और सिनेमा' पुस्तक में प्रकाशित


स्त्री-देह को आइटम के रूप में परोसते आइटम सॉन्ग्स

डॉ. रेनू यादव

             एक समय था जब फिल्मों में सूमधुर गीत-संगीतों के साथ-साथ कैबरे डांस का तड़का हुआ करता था । सेक्सी कैबरे डांसर अपनी भाव-भंगिमा वेश-भूषा के माध्यम से नायक-खलनायकों को रिझाते हुए फिल्म में दिए हुए किरदारों के साथ अपना मकसद पूरा करने में कामयाब हो जाती थीं । उस समय सेक्सी से तात्पर्य था कैबरे डांसर । लेकिन अब फिल्मों में कोई भी नायिका सेक्सी हो सकती है । यह आवश्यक नहीं कि कैबरे डांसर की तरह कोई अलग से आइटम गर्ल हो बल्कि फिल्मों में बदलते मानकों के साथ-साथ शालीन अदाकारा भी आइटम सॉन्ग पर डान्स करने से नहीं हिचकतीं । गगन गिल के अनुसार स्त्री देह स्वयं एक भाव है (पचौरी, सुधीश. स्त्री-देह के विमर्श. पृ. 44) और यह कहना अनुचित न होगा कि आइटम गर्ल्स देहष्टि के आग पर उत्तेजना के दबे मनोविकारों को सुलगाने में पूरी तरह कामयाब हो रही हैं । इसीलिए तो सिर्फ एक डान्स के कारण आइटम गर्ल मुख्य नायिका से अधिक पापुलर और फिल्म उद्योग को अधिक आर्थिक मुनाफा पहुँचाने वाली हो जाती है । उदाहरण के लिए चिकनी चमेली आइटम सॉन्ग का सिर्फ प्रोमोज दिखाकर डायरेक्टर ने अग्निपथ (2012) फिल्म को 100 करोड़ का आंकडा पार करवा लिया था ।   

           जिस गीत का फिल्म से कुछ लेना-देना नहीं होता तथा फिल्म में सिर्फ एक मोड़ देने के लिए अथवा ब्रेक के लिए मौज-मस्ती के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, उसे आइटम सॉन्ग कहा जाता है । यह सॉन्ग स्त्री को आइटम गर्ल्स के रूप नई छवि प्रदान करता है । आइटम से तात्पर्य है वस्तु और आइटम गर्ल एक दैहिक वस्तु के रूप में ही संप्रेषित होती है । यह पत्र-पत्रिकाओं, विज्ञापनों, फैशन जगत में दिखने वाली अथवा टी.वी. सीरियल तथा फिल्म जगत में काम करने वाली नायिकाओं-खलनायिकाओं से अलग छवि है । फिल्म की कहानी में इनकी भागीदारी न होते हुए भी ये फिल्म उद्योग को बड़ा मुनाफा पहुँचाने में कामयाब होती हैं । इसलिए इनकी फीस भी फिल्म की नायिका के बराबर अथवा उनसे अधिक होती है । मुन्नी बदनाम हुई के लिए मलाइका अरोड़ा खान ने 2 करोड़, बेबी डॉल के लिए सनी लियोनी ने 3 करोड़ और फेबीकोल से के लिए करीना कपूर ने 5 करोड़ रूपये मेहनताना लिया था । (जैन, उज्वल. फीस सुनकर रह जायेंगे आप दंग. http://punjabkesari.com/entertainment/these-items-will-be-stunned-by-hearing-the-crores-of-girls-fees/ 10 जुलाई, 2017)
                ये सभी आइटम गर्ल्स उत्तर-आधुनिक नारीवाद की स्वतंत्रता, समानता और सद्भावना के नारे को मात दे रही हैं । पर्सनल इज पॉलिटिक्स के सिद्घांत के तहत दैहिकता के दहकते अंगारे पर रातों-रात अपनी प्रसिद्धी की रोटी सेंक रही हैं । इनकी छवि साहित्य और फिल्मी स्त्रियों पद्मिनी, यशोधरा, पारो, चित्रा, श्रद्धा आदि से बिल्कुल भिन्न कामूक, आक्रामक और बेधड़क हैं । उत्तर-आधुनिक नारीवाद अपनी देह पर अपना स्वतंत्र अधिकार चाहता है किंतु ये स्त्रियाँ स्वतंत्रता के नाम पर देह की एक राजनैतिक षड़यंत्र से निकल दूसरे षड़यंत्र के दलदल में फँस चुकी हैं... कभी अपनी इच्छाओं के नाम पर तो कभी जीवन-शैली के नाम पर, कभी करियर के नाम पर तो कभी आर्थिक सक्रियता या जागरूकता  के नाम पर । अब कबीर की नारी को देखकर अंधा होत भुजंग की बात नहीं है बल्कि नारी खुद अपने नए ब्यूटी मिथ में दिग्भ्रमित हो बॉडी डिस-प्ले करके गीतों के बोल और हाव-भाव के माध्यम से लोगों को अंधा करने के लिए उद्धत है । कुंडी न खड़काओ राजा, सीधे अंदर आओ राजा... मुड बनाओ ताजा ताजा’ (गब्बर इज बैक, 2015) आदि सेक्स टॉक अथवा अब सेक्स सॉन्ग की संज्ञा दें तो गलत न होगा, के माध्यम से सॉफ्ट पोर्नोग्राफी परोस रही हैं । अपने समूची बदन को निचोड़ते हुए नमकीन बटर और तंदूरी चिकन’ (‘फेबीकोल से’, दबंग – 2, 2012)  बनकर मर्दों की थाली में उछल-उछल कर स्वतः ही गिर रही हैं तथा लार टपकाते हजारों मर्द चिकनी, आइटम’ ‘(टिंकू जिया’, यमला पगला दीवाना, 2011) आदि से संबोधित कर उसे अपनी-अपनी ओर खींचने की होड़ में हैं । और तो और आइटम गर्ल कभी पऊवा चढाकर(चिकनी चमेली’, अग्निपथ, 2012) ख़ुद आयी होती हैं तो कभी ख़ुद को एल्कोहल के साथ गटकने’ (‘फेबीकोल से’, दबंग – 2, 2012) के लिए मर्दों से गुहार लगा रही होती हैं, इतना ही नहीं आँखों से सेंकवाना उसे बिल्कुल पसन्द नहीं बल्कि हाथों से मनमानी (हल्कट जवानी, हिरोइन, 2012) करवाने के लिए बेकरार होती हैं । सुधीश पचौरी के अनुसार, स्त्री की नई छवि बनाने वालों ने स्त्री को अतिरिक्त मूल्य पैदा करने वाली बनाया है । उसकी नई छवि धन उपार्जित करती है । वह समूची अर्थव्यवस्था को गति देने वाली है । वह अब एक उद्योग है  (पचौरी, सुधीश. स्त्री-देह के विमर्श. पृ. 15)    

            जिस प्रकार सिनेमा पर समाज का प्रभाव पड़ता है उसी प्रकार समाज पर सिनेमा का भी प्रभाव पड़ता है । सिनेमा जगत शिक्षित-अशिक्षित, बाल-बच्चे-बूढ़े तथा युवा वर्ग यानी हर तबके को अपनी चपेट ले लेता है, जिसमें गीत-संगीत चलते-फिरते हर समय हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनकर साथ होता है । जिसमें से आइटम सॉन्ग्स (पार्टी ऑल नाइट, अभी तो पार्टी शुरू हुई है, तम्मा-तम्मा, जुम्मा-चुम्मा) में कुछ समय के लिए ही सही, अत्यधिक प्रभावकारी कारक होते हैं, जिससे अधिकतर लोग प्रभावित हो गुमराह होने के कगार पर भी आ जाते हैं ।

           फिल्म-जगत् में इन सेक्सी बोल वाले और तड़कते-भड़कते गानों के नाम आइटम सॉन्ग नाम के रूप में भले ही 2010 के आसपास अधिक प्रचलित हुआ हो लेकिन इसकी परंपरा अलग-अलग रूपों में पहले से ही चली आ रही है । 50 के दशक में आवारा (सन् 1956) फिल्म में कुक्कू मोरे पर फिल्माया गया डान्स एक दो तीन आजा मौसम है रंगीनको यदि आइटम सॉन्ग (उस समय आइटम सॉन्ग नाम नहीं था) कहा जाए तो गलत न होगा, जिसमें नायिका अपने यौवन की मादकता से नायक को अपनी ओर खींचने की भरपुर कोशिश करती है । 70 के दशक में बिन्दू जावेरी पर फिल्माया गया गाना ढ़िन्चक ढ़िन्चक कितने बीत गए हैं दिन कितनी बीत गयी रातें दिलरूबा, सब कुछ मिला तू ना मिला” (आरोप, 1974), उसी समय 60-70 के दशक में डान्सिंग क्वीन हेलन ये मेरा दिल यार का दीवाना, दीवाना दीवाना प्यार का परवाना” (डॉन, 1978) और पिया तू अब तो आजा” (कारवाँ, 1971) ने अपने डान्स के माध्यम से शरीर में झनझनाहट पैदा कर देने वाली अदाओं से हंगामा ला दिया था । 70 के दशक में जयश्री टी. रेशमी उजाला है, मखमली अंधेरा आज की रात ऐसा कुछ करो हो नही हो नही सबेरा...” (शर्मिली, 1971), 70 के दशक में जीनत अमान कुर्बानी (1980) फिल्म में लैला मैं लैला, ऐसी मैं लैला, हर कोई चाहे मुझसे मिलना अकेला” (जिसे अब रईस फिल्म में सनी लियोनी पर फिल्माया गया है) ने काफी धूम मचा रखा था । जवानी जानेमन हसीन दिलरूबा (नमक हलाल, 1982) औररात बाकी बात बाकी, होना है जो हो जाने दो (नमक हलाल, 1982) में परवीन बॉबी का ग्लैमर स्पष्ट नज़र आता है । शालीन किरदार निभाने वाली मुमताज भी इस प्रभाव से बच न सकीं, फिल्म भाई-भाई (1970) में आज रात है जवाँ, दिल मेरा न तोड़िये, कल ये रात फिर कहाँ, कल की बात छोड़ियेके माध्यम से अपने बोल्डनेस का परिचय दे ही दिया ।
               साथ ही मुजरा स्टाइल में आइटम सांग कहा जाये तो अरूणा ईरानी का इंसान (1982) फिल्म में राजा मोरी बाली उमर, बाली उमर का रखियो खयालका एक रूप दिखाई दिया, जिसके अनेक रूप बाद में भी सामने आए । चाइना गेट (1998) में उर्मिला मातोन्डकर ने छम्मा छम्मा ओ छम्मा छम्मा... बाजे रे मेरी पैजनियाके माध्यम से लोगों की नींदें उड़ा दी । पतली कमर मटकाकर, नागीन सी बलखाकर, नैन से नैन लड़ाकर, धानी चूनर सरकाकर शिल्पा शेट्ठी ने दिलवालों के दिल का करार लूटने, मैं आयी हूँ यू.पी. बिहार लूटने” (शूल, 1999) गाकर सबका दिल लूट लिया था, जिसमें वे जवानी की सारी बहार लूटा रही होती हैं । मुजरा स्टाइल में आइटम सान्ग्स पर नए नए प्रयोगों के साथ गोलियों की रास लीला राम-लीला (2013) फिल्म में ब्लॉउज का बटन बंद करते हुए प्रियंका चोपड़ा के ऊपर फिल्माया गया राम चाहे लीला चाहे लीला चाहे राम इन दोनों के लव में दुनिया का क्या काम (जिसे प्रियंका आधुनिक मुजरा का नाम देती हैं), एजेन्ट विनोद (2012) फिल्म में करीना कपूर पर दिल मेरा मुफ्त काफिल्माया गया है ,जिसमें हॉटनेस का पूरा खयाल रखा गया है । बंटी और बबली (2005) फिल्म में अमिताभ और अभिषेक के साथ ऐश्वर्या कजरारे कजरारे , तेरे कारे कारे नैनापर ठुमके लगाती हुई दिखाई देती हैं ।

             समय के साथ साथ बोल्ड गीतों का प्रचलन बढ़ा । खलनायक (1993) फिल्म में धक् धक् गर्ल् माधुरी दीक्षित ने अपनी आह से मर्दों की सिसकारियाँ (Moaning) निकाल देने वाला गाना चोली के पीछे क्या है, चुनरी के नीचे क्या है से धमाल मचा दिया था । जिसे इला अरूण और अलका याज्ञनिक ने आवाज दिया था, जिसके लिए इन्हें उस साल का फिल्म-फेयर अवार्ड भी मिला था और फिर से इन्हीं दोनों गायिकाओं की जोड़ी अपनी आह हायऔर दईया की सिसकारियों भरी आवाज से फिल्म करन-अर्जून (1995) में ममता कुलकर्णी के हॉट अवतार में राणा जी से माफी माँगती हुई नज़र आती हैं, जिसमें गुप चुप गुप चुप ... लम्बा लम्बा घुंघट काहे को डाला रे कहते हुए गाने के आखिरी में नायिका को मुँह काला होने से बचा लेती हैं । माधुरी दीक्षित के थिरकते कदम पर एक दो तीन (तेज़ाब, 1988), अमिताभ बच्चन का जुम्मा चुम्मा दे दे (हम, 1991) माँगना, चलती ट्रेन में शाहरूख खान के साथ मलाइका अरोड़ा ख़ान का चल छईयाँ छईयाँ (दिल से,1998), देख ले आँखों में आँखें डाल (मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस., 2003) में मुमैथ खान का अविस्मरणीय बोल्ड अवतार, बाबू जी जरा धीरे चलो बिजली खड़ी यहाँ बिजली खड़ी (दम, 2003) याना गुप्ता का बिजली बनकर गिरना, बिपाशा बासू पर फिल्माया गया सुलगता गाना बीड़ी जलाइले ज़िगर से पिये (ओमकारा, 2006),  माइया माइया गुलाबी तारे चुन (गुरू, 2007) में मल्लिका शेरावत के थरथराते कदम और कमर, रसपान के लिए बेकरार मलाइका अरोरा ख़ान का होठ रसीले तेरे होठ रसीले (वेलकम, 2007), राखी सावंत का सर चढ़कर बोलता क्रेज अरे ये तो बता देखता है तू क्या (क्रेजी – 4, 2008) आदि फिल्म में विशेष उपस्थिति (spatial appearance) की एक लम्बी परंपरा है, जो दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छाकर उन्हें सिनेमाघरों तक खींच लाने में कामयाब होते हैं । 

            2010 से आइटम सॉन्ग्स फिल्मों में एक आवश्यक तड़का बन गया, फिल्म को सूपर-डूपर हिट कराने में जिसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने लगी है । करोड़ों रूपये खर्च करके बने अकेले आइटम सॉन्ग में भरपुर सेक्सुआलिटी का प्रदर्शन होता है । सन् 2010 में कैटरीना कैफ़ पर फिल्माया गया सफेद चादर में लिपटी शीला की जवानी (तीसमार ख़ान, 2010) किसी के हाथ में तो नहीं आना चाहती किंतु अपनी कामूक अदाओं से सबको लुभाकर एक सूपरहिट सॉन्ग दे जाती हैं । मलाइका अरोरा ख़ान अर्थात् मुन्नी कभी झंडूबाम बनकर, कभी टकसाल, कभी आइटम से आम, आइटम बम, कभी अमिया से आम, सरेआम, सिनेमाहाल का रूप धारण कर डार्लिंग के लिए बदनाम (मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए, दबंग, 2010)  होती है । 2011 में इश्क का मंजन घिसने वाले धर्मेन्द्र और बॉबी देओल अर्थात् पिता और पुत्र टिंकू जिया (यमला पगला दीवाना, 2011) गाकर एक ही लड़की के साथ रोमांस करके कजरारे कजरारेमें अमिताभ और अभिषेक की याद दिलाते हुए एक ऐसी संस्कृति को दर्शाते हैं जो कि भारतीय संस्कृति में वर्जनीय है । सन् 2012 में मलाइका अरोरा सलीम की गली छोड़कर अनारकली डिस्को चली” (हाउसफुल 2, 2012) तो कैटरीना कैफ़ चिकनी चमेली छुपके अकेली पउवा चढ़ा के आयी (अग्निपथ, 2012), करीना कपूर ऊँह आह की आवाज से अँगडाईयाँ लेते हुए मिस कॉल से भी पटने के लिए तैयार हैं - मेरे फोटो को सीने से यार चिपका ले सईयाँ फेबिकोल से (दबंग – 2, 2012), छोकरों के जवानी की प्यास को और बढ़ाती हुई गौहर ख़ान हुआ छोकरा जवाँ रे (इशकजादे, 2012), हल्कट जवानी (हिरोइन, 2012) से सबकी नीयत हलाल करने वाली करीना कपूर स्वयं को चखना बनाकर चख लेने की ख्वाहिश रखती हैं । सन् 2013 में सनी लियोनी एक दिन के लिए, एक पल के लिए और सिर्फ कल के लिए दुल्हन बनना चाहती हैं, जिस पर लैला तेरी ले लेगी, तू लिखकर ले ले(शूटआऊट एट बडाला, 2013) का स्वांग भरा जाता है तो प्रियंका चोपड़ा पिंकी बन पैसा फेंक तमाशा देख, नाचेगी पिंकी फुल टू लेट (जंजीर, 2013) में वह न तो मुम्बई की है न दिल्लीवालों की, वह सिर्फ पैसों वालों की हैं जबकि यह ध्यान देने योग्य बात है कि वे एक स्वावलम्बी महिला होते हुए इस तरह के गाने पर अभिनय कर रही हैं । सन् 2015 में सम्भावना सेठ पर फिल्माए गए गाने में गाती हैं मैं सोडा तुफानी, कैरम की रानी, तीखी कचौरी मुँह में आ जाए पानी (बेलकम बैक, 2015), मलाइका अरोरा ख़ान पर आकर सारे फैशन ही खत्म हो जाते हैं फैशन ख़तम ख़तम मुझपे (डॉली की डोली, 2015) तो करीना कपूर की जवानी बीमा करवाकर संदूक में रखने लायक चीज नहीं है इसलिए यूज करने के लिए आवाहन करते हुए कहती हैं - मेरा नाम मैरी है” (ब्रदर्स, 2015) तो सनी लियोनी खुद को अव्वल नम्बर चीज मानती हुए पानी वाला डांस” (कुछ कुछ लोचा है, 2015) और चित्रांगदा सिंह पर फिल्माए गए गाने के बोल कुंडी मत सरकाओं राजा(गब्बर इज बैक, 2015) ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी है । सन् 2016 में रिचा चड्ढा का कैबरे डान्स मैं तो तेरे वास्ते हुई पानी-पानी, सरेआम ही लुट गई ये जवानी (कैबरे, 2016) सेक्सिएस्ट सॉन्ग में रखा जा सकता है तो सन् 2017 में हिकी को सार्वजनिक करती सईयाँ ने मोड़ी मेरी बहियाँ वो दे गया हमका हिकी हिकी (भूमी, 2017) सनी लियोनी पर फिल्माया गया लैला मैं लैला (रईस, 2017) पर सिनेमाघरों में न सिर्फ दर्शकों ने अपनी अपनी कूर्सियाँ छोड़कर नाचना और सीटी बजाना शुरू कर दिया बल्कि पैसों की बरसात तक करने लगें । 

          ये नायिकाएँ आइटम सॉन्ग्स तो करती हैं परंतु इन्हें आइटम गर्ल कहलाना पसंद नहीं बल्कि ये फिल्मों में अपनी विशेष उपस्थिति (स्पेशल अपियरेंस) मानती हैं । यह उपस्थिति चाहे समाज के लिए कितनाहूँ घातक क्यों न हो ? ये उपभोग बनकर उपभोक्ताओं को लुभाती हैं । इन्हें अपनी जवानी जानलेवा जलवा... देखने में हलवा लगता है, ट्रेलर दिखाकर पूरी फिल्लम दिखाने के लिए आमंत्रित करती हैं, शाम के अकेलेपन को बाँटने के लिए तैयार खड़ी होती हैं अथवा ज़िस्म की तिजोरी को तोड़कर लूट लेने के लिए आमंत्रित भी करती हैं (चिकनी चमेली, अग्निपथ, 2012), या फिर निःसंकोच कहती हैं - आजा मेरे राजा तूझे जन्नत दिखाऊँ मैं, बर्फिले पानी में फायर लगाऊँ मैं... (दबंग – 2, 2012), या जोबन है प्यासा तो जोर करे... आइटम बनाकर रखले  (हिरोइन (2012) । माचीस की तीली से भीगी बीड़ी जलाना, बबली बनकर बंटी के साथ कमरे में 20-20 होना और स्वयं को लुटवाने की चाह (बेलकम बैक, 2015) अथवा उ ला ला उ ला ला(द डर्टी पिक्चर, 2011) आदि गानों पर अभिनय करके मर्दों के दिल की धड़कने बढाना और अपने दैहिकता का वस्तुगत मूल्यांकन करना और करवाना स्वतंत्रता और समानता का स्वांग भरना ही तो है !! जहाँ स्त्री को खुलकर कहा जाता है और हम उस पर एन्ज्वॉय भी करते हैं – तू चीज बड़ी है मस्त मस्त” (मोहरा, 1994) या पैसा पैसा करती है तू पैसे पे क्यूँ मरती है(यह ध्यातव्य है कि इस फिल्म में नायक स्वयं पैसे के लिए मर रहा होता है जबकि यह गाना नायिका के लिए फिल्माया गया है, दे दना दन, 2009) ।

             आइटम सॉन्ग फिल्म-जगत का औद्योगिक दाव है जिसका उद्देश्य बड़ा मुनाफा अपने हक़ में करने का होता है, लेकिन इन सस्ती लोकप्रियता के कारण हम एक बार फिर स्त्री के वस्तुगत मूल्यांकन की ओर बढ़ रहे हैं । पतली दुबली छरहरी कामूक शरीर का ब्यूटी मिथ भले औद्योगिक जगत के लिए फायदेमंद हो पर स्त्रियों के प्रति समाज का नज़रिया अत्यधिक घातक होता जा रहा है । एक तरफ स्वयं स्त्रियाँ भी उसी ब्यूटी मिथ की ओर बढ़ रही है तो दूसरी ओर पुरूष भी आम औरतों में भी वही दैहिक संरचना देखना चाहते हैं । नाओमी वूल्फ के अनुसार, सुन्दरता का यह मिथ एक राजनीतिक मुहिम है जो औरत के खिलाफ जाती है । औद्योगिक क्रान्ति में घर के भीतर रहने वाली आरंभिक स्त्री गृहिणीथी । उत्तर-औद्योगिक क्रांति ने उसे बाहर निकाला लेकिन एकब्यूटी मिथ के साथ । यह ब्यूटी मिथ ही नया नियंत्रण है । स्त्री घर से निकलती है और ब्यूटी के उद्योग में फंस जाती है । सौन्दर्य की यह विचारधारा ही मिथ है जो नए ढंग से स्त्री पर सामाजिक नियंत्रण लागू करती है  (पचौरी, सुधीश. स्त्री-देह के विमर्श. पृ. 27) देखा जाय तो यह कट्टरपंथी नारीवादी कैथरीन मेकनॉन का पोर्नोग्राफी संबंधी मूल्यांकन के साथ सटिक बैठता है कि इसमें सामाजिक संबंधों के संगठन हेतु स्त्री अपने कामुकता भरे समर्पण के द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करती है, लेकिन इसमें पुरूष अपना वर्चस्व बनाये रखता है । (चतुवेदी, जगदीश एवं सुधा सिंह. कामुकता पोर्नोग्राफी और स्त्रीवाद. पृ. 14) यह कहना गलत न होगा कि जिस अस्मिता के लिए नारिवादियों ने अपनी जी-जान लगा दी उसे आइटम सॉन्ग्स ने एक झटके में उखाड़ फेंका । आज लड़कों के लिए लड़कियों के साथ छेड़खानी करना सहज एवं प्राकृतिक लगने लगा है और शीला, मुन्नी, जिया, टिंकू, पिंकी, मैरी आदि लड़कियों का घर से निकलना दूभर हो गया है । आज सेक्स बेडरूम से निकल कर पब, पार्टी, घर, स्कूल और सड़कों पर सार्वजनिक हो गया है । स्त्री अपनी अस्मिता को तार-तार होते हुए न सिर्फ देख रही है बल्कि आज़ादी के नाम पर उसे एन्ज्वॉय भी कर रही है । होमी के. भाभा का उत्तर-उपनिवेशवाद के द्विविधावादी (Ambivalence) सिद्धांत के तहत देखा जाए तो स्त्री पितृसत्ता के जकड़न के दो तरिकों के बीच फँसी हुई दिखाई दे रही है । वह स्टीरियोटाइप इमेज को तोड़ने में सफलता तो हासिल कर ली है लेकिन ख़ुद को आइटम होने से बचा नहीं पा रही अर्थात् वह कल भी वस्तु थी और आज भी है । स्त्री को वर्चस्ववादी सत्ता के इस षड़यंत्र को समझना होगा । आज़ाद स्त्री को सोचना होगा कि क्या वह सचमुच आज़ाद है ? कहीं वह इन सॉन्ग्स के माध्यम से लोगों के दिमाग में यह तो नहीं भर रही कि वह तंदूरी चिकन और बटर नमकीन ही है अथवा चखना बनकर कहीं भी कभी भी चख लेने वाली चीज है ? क्या वह सिर्फ एक चीज बनकर तो नहीं जीना चाहती ? या फिर वह प्यास बुझाने का सिर्फ एक साधन है ? क्या वह एन्ज्वॉयमेंट का साधन ही बने रहना चाहती है अथवा जीवन एक अहम् हिस्सा ?


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संदर्भ ग्रंथ –
·         पचौरी, सुधीश. स्त्री-देह के विमर्श. सं. प्रथम 2000. प्रकाशक – आत्माराम एंड संस, दिल्ली.
·         चतुर्वेदी, जगदीश्वर एवं सुधा सिंह. कामुकता पोर्नोग्राफी और स्त्रीवाद. सं. 2007. प्रकाशक – आनन्द प्रकाशन, कोलकाता.

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