पूर्ण रूप से प्रेम करते हुए भी कभी सम्पूर्ण नहीं होना चाहिए अथवा
सम्पूर्ण महसूस नहीं करना चाहिए । निरंतर एक कमी, आतुरता, लालसा, जिज्ञासा
एवं रोमांस का बने रहना जरूरी है ताकि प्रेम पिघल पिघल कर दीप्तिमान होता
रहे क्योंकि सम्पूर्णता के पश्चात् समाप्ति निश्चित है ।
- रेनू यादव
- रेनू यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें