सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

Reteeli aankhen...

      रेतीली आँखें...
आँखों के गुलाब ओस की नमी लिये
झांक रही हैं दूसरी रेतीली आँखों में
क्यों हो जाती हैं ये इतनी गरम
.......... टहाटह................. लाल
क्या कभी यहाँ बारिश नहीं हुई थी
या बारिश के बाद धूप उनमें ही समा गई
या फिर गुलाबी आँखों की नमी सूखकर
बन गई रेतीली ठर्रक लाल
रेतीली आँखों के बाल सीधे-सीधे दुनियाँ
में पसरकर झपट्टा दिया करते हैं, किंतु
गुलाबी आँखों की लटें हर फूलों और कांटों में
 उलझी ही रह जाती हैं
रेतीली आँखों के लिए प्रसिद्ध कथन है
"ये तो यूँ ही जली-भूनी रहती हैं
............हमेशा............. हरदम
एकतरफा आँखें हैं ये
व्यथा के साथ यथा कहाँ है???"
जबकि गुलाबी आँखों में हरपल
ओस की बूँदें छायी रहती हैं
ये कभी विरोध ही नहीं कर पातीं..
व्यथा भी खारे मोती सा लुढ़कता है औ'
ये हो जाती हैं 'बेचारी'...
और तब इन बेचारी आँखों की भी
व्यथा लेकर लड़ा करती हैं ये
'रेतीली आँखें'

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