शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

Yaaden

                 यादें
पुराने फटे जर-जर कपड़ों की तरह 
     तुमने मुझे उतार फेंका 
फिर भी तुम्हारी
     गंध बची रह गई मुझमें,
लोगों ने दूर से ही
    महक दरकिनार कर लिया
मैं तड़पती रही
   अपनी खूबसूरत  नाकामी पर,
तुम्हें कभी मेरा रूप रंग बनावट
इतना पसंद था... कि
एकपल के लिए बिसराना
गवारा न था,  
आज तुम्हारे सामने पोछा बनकर
पोंछ रही हूँ...
    तुम्हारे पैरों के नीचे ज़मीन,
क्योंकि मैं तुम्हें बचाना चाहती हूँ  
धुल-धक्कड़ से.
पर...
तुम मुझे पोछे का कपड़ा समझकर
     लांघ जाते हो
ताकि तुम मुझमें सने
    गंदले पानी से बचे रह सको,
और...
मैं देखती रह जाती हूँ
जर जर रेशों के बीच से
तुम्हारे फटे हुए प्यार को
महकती हूँ तुम्हारे गंध को
जो पहले की तरह नहीं महकती 
और...
     वह सुखमय एहसास 
     तुम्हारी यादें, तुम्हारे वादें
     मुझे ख़ुशी देने के बजाय  
          कर जाते हैं
              और भी दु:खी.... 

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

PYAAR

           प्यार
तुम मुझे...  बार- बार
गन्ने की तरह
चूसकर फेंक देते हो
फिर भी मुझमें
बचा रह जाता है
कुछ रस
मक्खियों और च्युटों के लिए.

मैं तुम्हारी यादों में
धीरे-धीरे सूखती हूँ
रसबिहीन  होकर
याद करती हूँ तुम्हारा
प्रथम स्पर्श, रसास्वादन से पहले की
तुम्हारी ललचाई आँखें
जिसे मैं प्यार समझ बैठी थी
तुम्हारा मुझे जड़ों से उखाड़ना औ'
शनै: शनै: सहलाना
मैं रोमांचित हो उठी थी
मेरा सर धड से अलग करना
जिसे मैं समर्पण कहती थी
और चूस जाना
जिसे मैं एकाकार कहने लगी.

परन्तु अब....
अब क्या कहूँ मैं
उन सारी सुखानुभूतियों को
अब तो मैं चूल्हे की लवना
बन चुकी हूँ.
क्या... इसे ही प्यार कहते हैं???